Tabish Khair, Daisy Hasan, Anjum Hasan among 11 nominees for the Hindu Best Fiction Award 2010
Posted by Indian Muslim Observer | 02 November 2010 | Posted in Book Review
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Tabish Khair |
However, Manu Joseph emerged triumphant and bagged The Hindu Best Fiction Award 2010 for his debut novel ‘Serious Men’. Joseph is the Deputy Editor of the Open magazine. The award was presented by noted writer and historian Nayantara Sahgal at hotel Taj Connemara at Chennai on November 1. The award carries a cash prize of Rs. 5 lakh and a plaque.

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Daisy Hasan |

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Anjum Hasan |
IMO - Job Opportunities
Posted by Indian Muslim Observer | | Posted in Job Opportunities
भारतीय मुसलमानों को करनी होगी अपनी जिम्मदारियों की पहचान, अपनी मदद आप से ही बच पायेगी की छबि
Posted by Indian Muslim Observer | | Posted in हिंदी
मुख्तलिफ लोगों ने अपने हिसाब से भारतीय मुसलमानों की मुख्तलिफ छबियां बनाई हैं।
इनमें से ज्यादातर छवियां मीडिया द्वारा प्रचारित-प्रसारित हैं। उदाहरण के तौर पर भारत के जाने-माने अंग्रेजी लेखक खुशवंत सिंह के मत में एक सामान्य मुसलमान वह है जिसके 8-10 बच्चे होते हैं, वह बनियान-लुंगी पहन कर गली-मुहल्ले के नुक्कड़ पर पान की पीक थूकता नजर आएगा। एक अन्य लेखिका तवलीन सिंह के विचार में एक सामान्य मुसलमान रूढ़िवादी होता है।
अमेरिका और कुछ बड़े मीडिया घरानों की मुसलमानों के बारे में यह धारणा है कि वे सभी बिन लादेन, बाबर, मुल्ला उमर, मौलाना मसूद अजहर और इनके द्वारा प्रचारित आतंकवाद की हिमायत करने वाले हैं। संघ परिवार के लोग तो मुसलमानों की तुलना गद्दारों से करते हैं और उन्हें देशभक्त नहीं मानते।
मीडिया का ही एक हिस्सा एक आम मुसलमान के बारे में ऐसा मानता है कि वह भोजन में नमक अधिक होने पर, पत्नी के साड़ी पहन लेने पर, किसी बात पर जरा सा गुस्सा आने पर उसे तुरंत प्रताड़ित कर तलाक दे देता है। वह परिवार नियोजन में विश्वास नहीं रखता, घेटो (एक अलग-थलग बस्ती) में रहने वाले लोगों जैसी मानसिकता रखता है, आधुनिक शिक्षा से दूर रहता है, वंदे मातरम् का विरोध करता है, बाबरी मस्जिद के पुनर्निर्माण, सलमान रश्दी, तस्लीमा नसरीन के चक्रव्यूह में फंसा रहता है। मुसलमानों की एक और छवि यह बनाई गई है कि वे अपनी अंधेरी, बदबूदार, जर्जर बस्तियों में रहना पसंद करते हैं। उनके बच्चे गलियों की कीचड़-मिट्टी में लोटते रहते हैं और गुल्ली-डंडा या प्लास्टिक की गेंद से क्रिकेट खेलते रहते हैं। मुसलमानों के बारे में मीडिया की बनाई गई छवियों में से एक छवि यह है कि वे अपनी औरतों और बच्चियों को आधुनिक तो क्या, प्राचीन शिक्षा भी देना पसंद नहीं करते है। वे औरतों को अपने समाज में कोई हक नहीं देते, जिससे मुस्लिम महिलाएं लाचारी का जीवन बिताती हैं। मुस्लिम पुरुष जब चाहते हैं, तब शादी कर लेते हैं और जब चाहते हैं तलाक भी दे देते हैं और यह नहीं सोचते कि तलाक देने से उस औरत का क्या होगा।
इसके अलावा मुसलमानों की एक और छवि यह है कि वे तालिबान, अरब देशों जैसे फलस्तीन, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात आदि के गुणगान में लगे रहते हैं, जबकि इन देशों को भारतीय मुसलमानों से कोई लेना-देना नहीं। आम मुसलमानों के बारे में एक छवि भारत के विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा बनाई गई है। इनके अनुसार सभी मुसलमान अल्पसंख्यकवादी हैं और वे चुनाव में मुस्लिम प्रत्याशी को ही वोट देते हैं। यह भी माना जाता है कि मुसलमान धर्म के आधार पर मतदान करते हैं ।
सचाई यह है कि इन सभी छवियों में से मुसलमान की एक भी छवि नहीं है। मुसलमान की बस एक ही छवि है कि वह टूट कर इस्लाम को चाहने वाला होता है, अपने रसूल से बेपनाह मुहब्बत करता है और अपने धर्म, रसूल पर किसी भी समय मर-मिटने के लिए तैयार रहता है। पर एक सही बात यह भी है कि इन बनी-बनाई छवियों के आधार पर भारत में बसे मुसलमानों का आकलन नहीं हो सकता।
जब देश का विभाजन हो रहा था तो उस समय भारत के बहुलतावादी समाज के समर्थक स्वतंत्रता सेनानी मौलाना अबुल कलाम आजाद ने जामा मस्जिद की सीढ़ियों से एक ऐसा भाषण दिया था कि पाकिस्तान जाने वाले अनेक लोगों ने अपने बिस्तरबंद खोल दिए थे और मौलाना के इस शेर पर लब्बैक कहा था 'जो चला गया उसे भूल जा, हिंद को अपनी जन्नत बना।'
पर यहां रुक जाने और इस वतन को अपना मानने के बावजूद भारतीय मुसलमान को शक की नजर से क्यों देखा जाता रहा है? इसका जवाब किसी के पास नहीं है
मुसलिम नेताओं और मुल्क की खतरनाक राजनीती के कारण भी आज मुसलमान इतने पिछड़े हुए हैं। अगर मुस्लिम नेता ईमानदारी से अपने समुदाय के नेतृत्व की बागडोर संभालते तो आज मुसलमानों की तुलना समाज के सबसे पिछड़े वर्गों से नहीं होती। एक तो अपने नेताओं की उपेक्षा और दोसरी तरफ मुस्लिम मुखालिफ वातावरण, इन दोनों वजहों से भारतीय मुसलमानों में खीझ बढ़ती गई और वे मुख्य धारा से दूर खिंचते चले गए। इन सारी वजहों के नतीजे में आज भारत का मुसलमान बिखरा-बिखरा सा नजर आता है।
भारतीय मुसलमानों को एक सामान्य मनुष्य व देश के अन्य नागरिकों के समान अधिकारों की मांग और जिम्मेदारियों की पहचान करनी होगी। साथ ही दूसरे धर्मों-समुदायों के लोगों के साथ समानता पर आधारित तालमेल बिठाने की गुंजाइश पैदा करनी होगी, वरना बहुत देर हो जाएगी ।
भारत जिस तेज़ी से आगे बढ़ रहा है और तरक्की कर रहा है उस तरक्की का भाग्यादर बन्ने की लिए भारतीय मुसलमानों को अब जागना होगा, किसी दोसरे पर भरोसा करने के बजाये अपने आप पर भरोसा करना होगा, दोसरे से मदद की उम्मीद छोड़ कर अपनी मदद आप करनी होगी, इस लिये के दुनिया की तारिख में वही कौमें कामियाब होती हैं जो अपनी मदद आप करना जानती हैं।
(Email: salmanahmed70@yahoo.co.in)
आईआईटी रुड़की में लड़कियों की इज्ज़तें नीलाम, परदे के खेलाफ़ चिल्लाने वाला मीडिया कियों है खामोश?
Posted by Indian Muslim Observer | | Posted in हिंदी
कहते हैं सिक्षा जानवरों को भी अक़लमंद और समझदार बनादेती है लेकिन आज हालत ये होगई है के हमारे मुल्क की कुछ जनि मणि सिक्षा की संथाएं इंसानों को बेशर्म जानवर बनाने का काम कर रही हैं । और सबसे जियादा अफ़सोस की बात ये हैं के बुर्के और परदे के खेलाफ़ आसमान को सर पे उठा लेने वाला मीडिया बिलकुल खामूश है।
आईआईटी रुड़की में एक लिपिस्टिक लगाने के आयोजन ने हमारी संस्कृति को शर्मसार कर दिया है। आईआईटी रुड़की जैसे प्रतिष्ठित संस्थान में सांस्कृतिक कार्यक्रम थॉम्सो-10 के दौरान की गई हरकत शर्मनाक ही कही जाएगी। इससे संस्थान की प्रतिष्ठा को तो ठेस पहुंची ही, छात्र-छात्राओं के बीच गरिमापूर्ण संबंधों की अपेक्षा को भी धक्का पहंुचा है। लिपिस्टिक लगाने के नाम पर की गई हरकतें अश्लीलता की हदें पार कर गई। ऐसे कार्यक्रमों पर लोगों की तीखी प्रतिक्रिया होनी स्वाभाविक ही है। रुड़की संस्थान प्रशासन अब आयोजकों को जिस तरह बचाने की कोशिशों में जुटा है, इससे उनके स्तर पर बरती गई लापरवाही साफ तौर पर नजर आ रही है। इसे इनफार्मल प्रोग्राम की श्रेणी में रखकर आईआईटी प्रशासन अपनी जवाबदेही से नहीं बच सकता। ऐसे मामले में सख्ती बरतने की जरूरत है ताकि भविष्य में इस सबकी पुनरावृत्ति नहीं हो सके। इतना ही नहीं इससे दूसरे शिक्षण संस्थानों को भी सबक लेने की जरूरत है। उच्चकोटि की शिक्षण संस्थाओं पर सिर्फ विद्यार्थियों के कैरियर संवारने की जिम्मेदारी ही नहीं है, बल्कि उन्हें सभ्य और एक जिम्मेदार नागरिक बनाने की सीख देना भी उन्हीं की जिम्मेदारी है। इस तरह की शिक्षा उच्च स्तर पर भी दी जानी चाहिए। इसमें लापरवाही सांस्कृतिक संकट को तो जन्म देगी ही, अभिभावकों के बीच अविश्र्वास को भी गहरा करेगी। इस सबको कतई उचित नहीं ठहराया जा सकता, इसलिए संस्थान को इस बारे में आगे से सचेत रहने की जरूरत है। अभी यह कार्य सांस्कृतिक गतिविधि के हिस्से के रूप में हुआ। आगे चलकर यह रैगिंग अथवा फ्रेशर्स पार्टी का हिस्सा नहीं बने इस पर संस्थान को गंभीरता से मंथन करने की जरूरत है। लिहाजा इस मसले पर सिर्फ लीपापोती नहीं, बल्कि सख्ती से अंकुश लगाने की जरूरत है, वरना वोह दिन दूर नहीं जब सिक्षा के नाम पर लड़कियों की इज्ज़तों की नीलामी एक आम बात बन जाएगी और बड़ी संथाओं में पढने वाली शायेद ही कोई लड़की अपनी आब्रो बचा पायेगी।
(Email: salmanahmed70@yahoo.co.in)
Three Important Questions Indian Muslims should ponder
Posted by Indian Muslim Observer | 01 November 2010 | Posted in Opinion

कश्मीर पर सियासत करने वाले पाकिस्तान के नाम, हिन्दुस्तानी मुसलमान का पैग़ाम
Posted by Indian Muslim Observer | | Posted in हिंदी
वतने पाक के बाज़र्फ़ सियासतदानों
कौम ओ मिल्लत के तरफ दार हसीं चारा गरो
ज़ुल्म कश्मीर के मजलूमों पे जब होता है
इन का ग़म देख कर तुम लोगों का दिल रोता है?
तुम ने इन लोगों की बेलोस हिमायत की है?
इन की उजड़ी हुई नस्लों से मुहब्बत की है?
ये इनायत ये करम क्यों है ज़रा ये भी कहो?
तुम को इन लोगों का ग़म क्यों है ज़रा ये भी कहो?
क्या इन्हें देख के तुम वाकई रंजीदा हो?
इन की खुशियों के लिए वाकई संजीदा हो?
तुम जो हो कौम के हमदर्द तो आगे आओ ?
एक मुद्दत की जो उलझन है उसे सुलझाओ?
आँख इस पार उठाना ही जवान मरदी है?
तुम को सरहद के इधर वालों से हमदर्दी है?
किया उधर साहिबे ईमान नहीं रहते हैं?
क्या कराची में मुस्लमान नहीं रहते हैं ?
तुम ने कश्मीर के जलते हुए घर देखे हैं
और बच्चों के भी कटते हुए सर देखे हैं
ज़ुल्म कश्मीर या गुजरात में जो होता है
ये तो अपने नहीं ग़ैरों का सितम होता है
लेकिन जब भाई ही भाई का लहो पिता है
दर्द ग़ैरों के मुकाबिल में बहुत होता है
अपने घर का तुम्हें माहोल दिखाई न दिया?
अपने कूचे का तुम्हें शोर सुनाइ न दिया?
अपनी बस्ती की तबाही नहीं देखि तुम ने ?
उन फिजाओं की सियाही नहीं देखि तुमने ?
मस्जिदों में भी जहाँ कतल किया जाता है
भाइयों का भी जहाँ खून किया जाता है
लूट लेता है जहा भाई बहन की इस्मत
और पामाल जहाँ होती है मां की अज़मत
एक मुद्दत से मुसाफिर का लहू बहता है
अब भी सड़कों पे मुहाजिर का लहू बहता है
मारे जाते हैं वहां जो मेरे अजदाद हैं वो
मादरे हिंद की बिछड़ी हुई औलाद हैं वो
मारते हो जिसे तुम वोह तो मुस्लमान ही हैं
वोह तुम्हारी ही तरह साहिबे ईमान ही हैं
कौन कहता है मुसलमानों के ग़म ख्वार हो तुम?
दुश्मने अमन हो इस्लाम के ग़द्दार हो तुम
तुम को कश्मीर के मजलूमों से हमदर्दी नहीं
किसी बेवा किसी मासूम से हमदर्दी नहीं
तुम में हमदर्दी का जज्बा जो ज़रा सा होता
तेरे हाथों से मुसलमानों का खों ना बहता
और कराची में कोई जिस्म न ज़ख्मीं होता
खौफ के साये में हर शख्स ना ऐसे सोता
लाश की ढेर पे बुनियादे हुकूमत न रखो
अब भी है वक़त के ना पाक इरादों से बचो
मशवरा यह है के पहले वहीँ इमदाद करो
और कराची की गली कूचों को आबाद करो
जब वहां प्यार के सूरज का उजाला हो जाए
और हर शख्स तुम्हें चाहने वाला हो जाए
फिर किसी की भी तरफ चश्मे इनायत करना
फिर तुम्हें हक है किसी की भी हिमायत करना
और गर अपने यहाँ तुम ने सितम कम ना किया
अपनी धरती पे जो खुर्शीद को शबनम ना किया
तो कभी चैन से तुम भी नहीं रह पाओगे
अपनी भड़काई हुई आग में जल जाओगे
मस-अला कश्मीर का तो आज ना कल हल होगा
लेकिन तेरा ना कहीं उसमें कुछ दखल होगा
(Email: salmanahmed70@yahoo.co.in)
Indian Media’s selective amnesia: Underreported Facts of ‘Azaadi’ Meeting at New Delhi
Posted by Indian Muslim Observer | | Posted in Indian States, Media
FATWA for Muslims from Saudi Arabia
Posted by Indian Muslim Observer | | Posted in Fatwa
IUML becomes third biggest party in Kerala
Posted by Indian Muslim Observer | | Posted in Indian States, Latest News