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Published On:28 October 2010
Posted by Indian Muslim Observer

दहशतगर्दी के असल चेहरे हो रहे हैं बेनेकाब, देश भक्ति के नाम पर हो रहा था आतंकबाद का नंगा नाच

सलमान अहमद

मुल्क में जब भी कोई आतंकबादी हमला हुआ उसका इलज़ाम मुसलमानों के सर थोप दिया , लेकिन जब हकीकत सामने आई तो उन आतंकबादी हमलों के पेछे ऐसे लोगों का हाथ नज़र आया जो अपने इलावा किस दोसरे को देश भक्त समझते ही नहीं हैं ।

अगर आरंभ में ही यह कदम उठा लिये जाते तो देश को जिन आतंकवादी हमलों का सामना करना पड़ा, शायद उनसे बच जाते। बहरहाल आज के इस संक्षिप्त लेख में मैं अपने पाठकों तथा भारत सरकार के सामने थोड़े शब्दों में वे घटनायें सामने रखना चाहता हूं , जिन से बार-बार हमारे देश को जूझना पड़ा। अभी चर्चा केवल उनकी जिनकी जांच का निष्कर्ष सामने आ गया है या आता जा रहा है। हो सकता है शेष घटनाओं की भी नये सिरे से छान बीन हो तो ऐसा ही कुछ सामने आये। यह कुछ मिसाले इसलिए कि हमारी सरकारी और खुफिया एजेंसियां अंदाजा कर सकें कि उन बम धमाकों के बाद किन लोगों को संदेह के आधार पर गिरफ्तार किया गया था और जब सच सामने आया तो किनके चेहरे सामने आये।

मालेगांव धमाके õ1
(8 सितम्बर 2006)
37 हताहत
आरम्भ में जो व्यक्ति गिरफ़्तार हुए, वे सल्मान फ़ारसी, फ़ारुक़ अब्दुल्ला मख़दूमी, रईस अहमद, नूरुलहुदा, शम्सुलहुदा, शब्बीर बीड़ी वाले।
बाद की जांचः 2008 के मालेगांव बम धमाकों में हिन्दू आतंकवादियों के सामने आने के बाद अन्य मामलों में भी शक की सूई भी हिन्दू आतंकवादियों पर ही गई।

समझौता एक्सप्रेस बम धमाका
18 फ़रवरी 2007
68 हताहत, अधिकतर पाकिस्तानी नागरिक
आरम्भिक जांच में लश्कर तथा जैश -ए -मुहम्मद पर आरोप लगाया गया और इस सिलसिले में पाकिस्तानी नागरिक अज़मत अली को गिरफ़्तार किया गया।
बाद की जांच में सामने आया कि इन घटनाओं के पीछे हिन्दू आतंकवादी हो सकते हैं। इन धमाकों में जो पद्धति प्रयोग की गई है वह मक्का मस्जिद के धमाकों से मिलती हुई है। इस मामले में पुलिस को आर.एस.एस के प्रचारक संदीप डांगे तथा रामजी के नाम सामने आये।

मक्का मस्जिद धमाका
18 मई 2007
14 व्यक्तियों की मृत्यु
आरम्भ में स्थानीय पुलिस ने 80 मुस्लिम युवकों को गिरफ़्तार किया और उनसे पूछताछ की गई, जिनमें से 25 व्यक्तियों को गिरफ़्तार कर लिया गया, कोई सबूत न मिलने पर इनमें से इब्राहीम जुनैद, शुऐब जागीरदार, इमरान खान तथा मौहम्मद अब्दुल हकीम इत्यादि को सम्मानपूर्वक बरी कर दिया गया।
बाद की जांच के बाद जो परिणाम सामने आया वह इस प्रकार है। 2010 में सीबीआई ने घोषणा की कि वह इस मामले में 2 अभियुक्तों के बारे में सही सूचना देने वालों को 10 लाख रु0 का इनाम देगी। फिर इस मामले में संदीप डांगे, राम चन्द्र कालसिंगा तथा लोकेश शर्मा को गिरफ़्तार किया गया।

अजमेर शरीफ़ धमाका
11 अक्तूबर 2007
3 हताहत
जैसा कि अधिकांश बम धमाकों के बाद होता रहा है। आरम्भ में हूजी, लश्कर पर धमाकों का आरोप लगाया गया तथा जिन लोगों को गिरफ़्तार किया गया वह भी मुसलमान ही थे, उनमें अब्दुल हफ़ीज़, शमीम, खशीउर्रहमान, इमरान अली शामिल थे।
806 पृष्ठों पर आधारित आरोप पत्र में जो राजस्थान एटीएस ने एडीश्नल चीफ़ जूडिशियल मजिस्ट्रेट की अदालत में दाखिल की है इसमें 5 अभियुक्तों के नाम डाले गए हैं। अभिनव भारत के देवेन्द्र गुप्ता, लोकेश शर्मा और चन्द्रशेखर हैं। यह पुलिस की हिरासत में हैं, जबकि संदीप डांगे तथा रामजी कालासांगा फ़रार बताये जाते हैं।

थाणे बम धमाका
4 जून 2008
हिन्दू जन जागृति समिति तथा सनातन संस्था इस धमाके के पीछे बताई जाती हैं और रमेश हनुमंत गडकरी और मंगेश दिनकर निकम गिरफ़्तार किये गए थे। इन धमाकों का उद्देश्य फ़िल्म ‘जोधा अकबर’ के प्रदर्शन के विरुद्ध विरोध जताना था।

कानपुर तथा नांदेड़ बम धमाके
अगस्त 2008
कानपुर में बजरंग दल के 2 सदस्यों राजीव मिश्रा, भूपेन्द्र सिंह बम बनाते समय धमाका होने से मारे गए थे। अप्रैल 2006 में एन राजकोंडवार और एच पानसे नांदेड़ में बम बनाते समय मारे गए थे, वे दोनों भी बजरंग दल के थे।

मालेगांव-2
29 सितम्बर 2008
7 हताहत
आरम्भ में कहा गया था कि इस धमाके में इंडियन मुजाहिदीन शामिल है परन्तु बाद में अभिनव भारत तथा राष्ट्रीय जागरण मंच के लिप्त होने की बात सामने आई। उसमें प्रज्ञा सिंह ठाकुर, कर्नल पुरोहित और स्वामी अम्बिकानंद देवतीर्थ (दयानंद पाण्डे) गिरफ़्तार हुए। यही वह बम धमाके थे जिनकी जांच शहीद हेमंत करकरे कर रहे थे और जिससे आतंकवादियों का वह चेहरा सामने आया जिसके बारे में पहले सोचा ही नहीं जाता था। लेकिन जैसे जैसे जांच आगे बढ़ती गई परतें खुलती र्गइं। अगर 26/11 के आतंकवादी हमले में हेमन्त करकरे शहीद न होते तो शायद आज आतंकवाद का यह सम्पूर्ण नेटवर्क हमारे सामने होता। फिर भी उनके जाने के बाद भी यह सिलसिला रूका नहीं है। अजमेर बम धमाके की जांच के परिणाम हमारे सामने है।

गोवा धमाका
16 अक्तूबर 2009
इस धमाके में जो 2 व्यक्ति मारे गए, वे सनातन संस्था के कार्यकर्ता थे, मरने वाले मालगोंडा पाटिल तथा योगेश नायक उस समय मारे गए थे जब वह विस्फ़ोटक पदार्थ लेकर स्कूटर से जा रहे थे और उसमें अचानक धमाका हो गया।
जिस समय नांदेड़, कानपुर तथा गोवा में बम बनाते या ले जाते हुए यह लोग हताहत हुए, अगर उसी समय हमारी खुफिया एजेंसियों तथा एटीएस ने मुसतैदी से काम लिया होता तो सम्पूर्ण नेटवर्क का पर्दाफाश हो सकता था या कम से कम किस मानसिकता के लोगों का कारनामा था और किस स्तर के लोग इन षड्यंत्रों में लिप्त हैं, यह सामने आ सकता था। बात केवल कुछ लोगों के पकड़े जाने या एक डायरी में कुछ नाम लिखे होने की नहीं है, बल्कि असल बात यह है कि आतंकवाद का यह सिलसिला थम क्यों नहीं रहा था? शायद इसलिए कि हमने इस दिशा मंे कभी सोचा ही नहीं था, जिस दिशा में आज न केवल सोचा जा रहा है, बल्कि कार्यन्वयन करने का प्रयास भी किया जा रहा है। निसंदेह 26 नवम्बर 2008 को हुआ आतंकवादी हमला अत्यंत विडम्बनापूर्ण तथा शर्मनाक था, लेकिन उसके बाद से अगर छोटे छोटे मामलों की चर्चा न कि जाये तो कहा जा सकता है कि लगभग पिछले दो वर्षों में देश किसी बड़े आतंकवादी हमले का शिकार नहीं हुआ। क्या इसका एक कारण यह भी है कि अब आतंकवाद में लिप्त वह चेहरे सामने आने लगे हैं।

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1 comments for "दहशतगर्दी के असल चेहरे हो रहे हैं बेनेकाब, देश भक्ति के नाम पर हो रहा था आतंकबाद का नंगा नाच"

  1. Hamin ko maarte hain aur hameen ko karte hain giraftaar
    aye mere ilaahi maajra kiya he

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